“मम्मी, मुझे भी मोबाइल दिला दो ना, अब मैं बड़ा हो गया हूँ !” ट्रैन मैं सफर कर रहे एक बारह - तेरह साल के बच्चे ने अपनी माँ से जिद्द करते हुए कहा |
शाम सात बजे का समय था और हम सभी लोग नयी दिल्ली से बम्बई जाने वाली बम्बई राजधानी की थर्ड ऐ.सी में यात्रा कर रहे थे| | कम्पार्टमेंट की बैरे सभी लोगों को सूप सर्व कर रहे थे | मैं भी शिवानंद जी की किताब पढ़ते हुए अपने सूप को एन्जॉय कर रही थी | उस बच्चे की बात पर मेरा कोई ख़ास ध्यान नहीं गया और मैं अपनी किताब पढ़ने में व्यस्त थी | लेकिन जब वह काफी जिद्द करने लगा तब मेरा धयान उस पर पड़ा |
“लेकिन तुम्हे मोबाइल क्यूँ चाइये ?” माँ ने पुछा |
“क्यूंकि बाकी सभी के पास है” | बच्चे ने जवाब दिया |
तभी मेरा धयान वहां बैठे बाकी लोगों पर गया | दो-चार लोगों को छोड़कर लगभग सभी लोग या तो अपने मोबाइल या फिर अपने लैपटॉप में व्यस्त थे |
आजकल के समय में “बाकी” सभी की पास मोबाइल होना बड़ी बात नहीं है | लेकिन उस मोबाइल के इलावा किसी और को वक्त ना देना, ये बात शायद उस मासूम बच्चे को अच्छी नहीं लगी |
वहीँ कुछ साल पहले जब लोग ट्रैन में एक दुसरे से बात करने की लिए कोई भी टॉपिक छेड़ देते थे और बाकी अन्य लोग भी उस मेहफिल का हिस्सा बना चाहते थे | परिवार के लोग ताश खेलकर अपना समय व्यतीत करते और बाकी लोग भी उनसे अपना मन बहला लेते थे | कुछ लोग चने और मूंगफली खाकर, ट्रैन की खिड़की की भाहर प्रकृति का मज़ा लेते थे |
पर आज लोगों को अपने आस -पास बैठे लोगों का चेहरा देखने का भी वक्त नहीं मिलता | या फिर ये भी बोल सकते हैं की बगल मैं बैठे इंसान से बात करने की बजाये आजकल लोग सोशल नेटवर्किंग साइट पर पुतलों से बात करना चाहते हैं | वो पुतले जो सिर्फ हँसते हुए दिखयी देते हैं | क्या वाकई मैं आजकल लोग सोशल हैं ? अगर ऐसा होता तो वह बच्चा अपनी माँ से मोबाइल मांगने की बजाए अपने आस पास के लोगों के बीच बैठा बात कर पाता | उन्हें अपने स्कूल और क्लास के कुछ किस्से सुना पाता | उन्हें कुछ खट्टे मीठे जोक्स सुना पाता | पर अफ़सोस, इस बदलते वक़्त के साथ, आगे चलकर वह बच्चा भी बाकी अन्य लोगों के तरह अपने लैपटॉप और मोबाइल पर अपने फ्रेंड्स और रिश्तेदारों से बात करने में बहुत खुश होगा, परन्तु ट्रैन में अपने बगल में बैठा यात्री कब आया और कब गया यह उसे पता भी नहीं चलेगा !