“पापा, चलो आज वृन्दावन में बांकेबिहारी-जी के दर्शन कर आएं” |
मैं,अन्वेषा और केशव गर्मियों की छुट्टियों में मथुरा गए हुए थे | अन्वेषा तब ढाही (2.5) साल की और केशव डेड (1.5) साल का था | नाना और नानी के साथ मथुरा में अन्वेषा और केशव को बहुत आनंद आ रहा था | काफी समय से मैने बिहारी-जी के दर्शन नहीं किये थे तो इसीलिए मैंने इस बार वृंदावन जाने का प्लान बनाया |
“ठीक है | में ड्राइवर को फ़ोन कर देता हूँ | वह शाम 4 बजे आ जाएगा |”
हम लोग ठीक शाम को 4 बजे वृन्दावन के लिए निकल गए | सबसे पहले हम लोग प्रेम-मंदिर देखने रुके | ये मंदिर जगद्गुरु कृपालु परिषत द्वारा सचालित किया जाता है | इस भव्य मंदिर की अति सुंदर झांकियां व कृष्ण-दर्शन करके मन मोहित हो गया |
फिर हम अंग्रेज़ों के मंदिर यानी इस्कॉन-टेम्पल गए | इस मंदिर में श्री कृष्ण-बलराम के दर्शन अति सुंदर थे | साथ में भजन मंडली द्वारा “हरे-राम, हरे-राम, राम-राम, हरे-हरे…हरे-कृष्ण, हरे-कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे” स्वर्ग जैसा आनंद देता बन रहा था |
आखरी में हम सब बांके-बिहारी-जी के दर्शन को निकले | इस मंदिर की अपार मानयता होने की वजह से यहाँ काफी भीड़ रहती है | हम-लोगो ने दोनों बच्चों को अच्छे से सँभालते हुए दर्शन किये | दर्शन अत्यंत सुंदर थे | ऐसा लग रहा था की बांके-बिहारी सिर्फ आप ही को देख रहे थे |
मंदिर के बाहर ठाकुर जी की, फूलों की, अथवा खाने-पीने की काफी दुकाने थीं | बाहर निकलने का रास्ता भी काफी सकरा था जिसकी वजह से हम लोगों को निकलने में काफी परेशानी हुई | जैसे-तैसे हम लोग उस सकरे रस्ते पर से बाहर आ पाए | बाहर रोड पर तो दुकाने ऐसे सजी हुई थीं मानो दिवाली हो | तरह-तरह के खिलौने, ठाकुर-जी का सामान, चाट-पकोड़ी इत्यादि सब तरह की दुकाने थीं | खिलौनों की दुकान देख कर अन्वेषा खिलौने की लिए जिद्द करने लगी | उसको खिलौना दिलाने की लिए मैंने एक दुकान पर रुक कर उसे एक टॉय दिला दिया | अभी-अभी दुकान वाले को मैंने पैसे दिए थी तो मेरा वॉलेट (पर्स) मेरे हाथ में ही था | टॉय लेने के बाद अन्वेषा गोदी में आने की लिए मचल गयी | शायद अब तक वह थक गयी थी | केशव तो पहले से ही पापा की गोदी में था | अन्वेषा को मैंने गोदी में ले लिया और में पास की दुकान में अपने लड्डू-गोपाल जी के लिए पोशाक देखने लगी |
अचनाक मेरा ध्यान मेरे पर्स पर गया जोकि अब मेरे हाथ में नहीं था | ये क्या !! मेरा पर्स कहाँ हैं ? अभी तो था ? कहाँ है ? नीचे तो नहीं गिर गया ? मैंने, मम्मी और पापा ने सब जगह देखा, पर पर्स कही नज़र नहीं आया | शायद अन्वेषा को गोदी से उठाते समय पर्स मेरे हाथ से नीचे गिर गया था और फिर उसे कोई उठा कर ले गया था | उस पर्स में करीब दस-हज़ार रुपये के साथ मेरे सारे क्रेडिट कार्ड्स और पैन-कार्ड थे | मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे शरीर का कोई हिस्सा काट कर ले गया | मुझे रोने के इलावा कुछ सूझ नहीं रहा रहा | इस बीच मैंने अन्वेषा को पापा को दे दिया था और केशव मेरी गोदी में आ गया था | अचानक मेरा धयान केशव की तरफ गया | वह मुस्कुरा रहा था और अपना हाथ मेरे मुँह पर मार रहा था जैसे तो कुछ कहने की कोशिश कर रहा था | उसकी मुस्कराहट देख कर मैंने अपने आप को तस्सली दी | “मेरे दोनों बच्चे ठीक हैं, मम्मी-पापा ठीक हैं, पैसे तो फिर आ जाएंगे, कोई बात नहीं” | अचानक मुझे पुलिस-चौकी में कम्प्लेंट करने का ख्याल आया | पास एक दुकानवाले से पुलिस चौकी के बारे में पूछने पर पता चला कि चौकी बिलकुल सामने ही थी | रोने जैसे स्थिति में मैं केशव को गोदी में उठाये हुए पुलिस-चौकी पहुंची | “भाईसाहब , मेरा पर्स …” मैंने बोलना शुरू किया ही था की मेरी नज़र टेबल पर पड़े पर्स पर गयी | “ये रहा मेरा पर्स…अरे ये तो मेरा है …यहाँ कैसे आया” मुझे ऐसा लगा मनो शरीर में फिर से प्राण लौट आये हों | पुलिस-वाले ने एक महिला को फ़ोन कॉल कर के बुलाया जो मेरा पर्स चौकी में जमा करा गयी थीं | उस सज्जन महिला को मैंने, मम्मी और पापा ने तह दिल से धन्यवाद दिया और फिर अपना रुपयों और कार्ड्स से भरा पर्स लेकर हम अपनी कार की तरफ चल पड़े | कार में बैठ कर सब लोगों ने चैन की सांस ली | फिर मेरे पापा ने कहा - “ऐसे चमत्कार सिर्फ बांकेबिहारी जी की कृपा से ही हो सकते हैं” | “श्री बांके बिहारी लाल की जय …”