बात किताब से!

किताबें हीं हमारी सच्ची मित्र हैं | यह लेख मेरी एक कल्पना है जिसमें मैंने एक किताब और एक व्यक्ति के बीच की बातचीत पेश की है | यह जो किताब है, काफी महीनों से घर की किसी अलमारी मैं बंद है और अचानक उस किताब में प्राण आ जाते है | तो देखते हैं उस किताब और व्यक्ति के बीच की बातचीत :-

…ठक-ठक ठक-ठक
व्यक्ति: पता नहीं कहाँ से ये आवाज़ आ रही है ? घर का दरवाज़ा तो बंद है (सोचता हुआ)
किताब: अरे… इस अलमारी से बोल रही हूँ |
(वह आवाज़ सुनने पर अलमारी खोलता है)
व्यक्ति: चौंकता हुआ - तुम, तुम बोलती हो ?
किताब: इतने दिनों तक इस अलमारी में बंद रहते -रहते मेरा दम घुट गया | ज़रा देखो मेरी हालत, कितनी धुल जम गयी है |
व्यक्ति: किताब को देखते हुए, हाँ, ये तो है | मैं अभी एक कपडे से साफ़ कर देता हूँ |
(कपडा लाकर किताब को साफ़ कर देता है)
किताब: राहत की सांस लेते हुए, चलो अब मुझे ठंडी हवा में रखो |
(वह किताब को एक मेज पर लाकर रखता है)
व्यक्ति:
किताब: क्या घर में और कोई नहीं है ?
व्यक्ति: हैं, पर अभी सभी लोग बाहर गए हैं |
किताब: तुम क्यूँ नहीं गए ?
व्यक्ति: (दुखी मन से )आज मेरी ज़रा घर वालो से कहा-सुनी हो गयी, इसीलिए मैं नहीं गया |
किताब: इतने दुखी हो तो कुछ अच्छा पढ़ लो |
व्यक्ति: पढ़ने से क्या होगा ?
किताब: कुछ भी अच्छा पढ़ने से मन शांत होता है, जैसे साहित्य, भक्ति या फिर हलकी-फुल्की कहानी या कॉमिक्स की किताबें |
व्यक्ति: पर मैं तुम्हारी बात पर कैसे यकीन करूँ ?
किताब: मुझे देखो, मैं, सत्यार्थ-प्रकाश, स्वामी दयानंद जी द्वारा लिखी गयी किताब हूँ | मेरे एक-एक पन्ने पर जीवन के सही अर्थ को बताने जैसी बाते लिखी हैं | ज़रा स्वामी-जी के द्वारा रचित इस किताब को चंद समय तो देकर देखो, फिर मुझसे बात करना |
व्यक्ति: ठीक है, मैं पांच मिनट के लिए किताब को पढ़कर देखता हूँ

व्यक्ति किताब को पढ़ता है और उसका डेढ़ घंटा कब बीत जाता है उसे पता नहीं चलता |

व्यक्ति: (गहरी सांस लेते हुए) अरे इसमें तो काफी अच्छी बात बताई हैं | मुझे बहुत अच्छा लग रहा है |
किताब: किताब: मनुष्य चाहे अकेला ही क्यूँ न हो, अगर हमारा अध्यन रोज़ थोड़ी देर करे तो कभी अपनी राह से नहीं भटकेगा | ऐसे व्यक्ति से लोग खुद-ब-खुद जुड़ना चाहेंगे | अच्छी किताबें मनुष्य के जीवन में एक नया रंग भर देती है | मनुष्य चाहे हमारा साथ छोड़ दे, लेकिन हम महुष्य का साथ कभी नहीं छोड़ते |

मनुष्य का सब सच्चा मित्र वह खुद ही है | वह चाहे तो अपना जीवन अच्छे तरह व्यतीत करे, जिसके लिए उसे अच्छे लोग, अच्छा अध्यन, मधुर वाणी चुनना पड़ेगा | अथवा उसका जीवन निर्जीव करने के लिए बुरे लोग, बुरा अध्यन व बुरी आदतें हमेशा उसके दरवाज़े पर खड़ी मिलेंगी |