पूजा विधि
- सुबह नहा-धो कर खूब तैयार हो जाएं .
- अपनी गोदी में थोड़ा हलवा या 16 बतासे रख ले। ये इसलिए करते हैं की गोदी खाली नहीं रहे। ये बच्चे का प्रतीक है। अब सभी कार्य करे।
- चिकनी मिटटी से गौरा-जी और इसर-जी बना लें।
- गौरा-जी और इसर-जी को वस्त्र और आभूषण से सजा ले।
- एक पट्टे या चौकी पर साफ़ कपडा बिछा लें।
- दोनों को पट्टे पर बैठा दें।
- अब इनकी पूजा कर लें - रोली, मेहँदी, काजल चढ़ा दें , फूल चढ़ा दें, प्रसाद खिला दे।
- अब दीवार पर एक सफ़ेद कागज चिपका दे।
- अब उँगली से 16 बिंदी मेहँदी की, 16 बिंदी रोली की और 16 बिंदी काजल की, 16 बिंदी हल्दी की
लगा दें | - सभी औरतें बारी-बारी से 16-16 बिंदी लगाएं
- सभी कुवारी लडकियां बारी-बारी से 8-8 बिंदी लगाएं |
- अब गणगौर की कथा पढ़ ले।
- अब गणगौर के गीत और बधावा गा लें।
बाइना निकाल लें:
14 साफ़ प्लेट पर रोली से सतिया बना लें।
15. उसमे 16 पूड़ी, हलवा और श्रद्धा अनुसार (जैसे 21 रूपए, 51 रुपए ,101 रूपए आदि) पैसे रख दें ।
16. अब हाथ में थोड़ा जल लेकर और अपने पल्ले का कोना पकड़ कर प्लेट के चारो और घुमा दें।
17. अब जल कही साइड में छोड़ दे और हाथ जोड़ ले।
18. ये सामान यानि पूड़ी, हलवा और रूपए अपनी सास या जेठानी या जेठ या ननद को दें। इसे मंदिर में पंडितजी को भी दे सकते हैं।
19. गोदी का हलवा/बतासे खुद खा ले या बच्चों को दे दे
विसर्जन
20. शाम को गौरा जी और इसर जी को नदी में विसर्जित कर दें।
नदी न होने पर भूमि विसर्जन भी कर सकते हैं।
**कुछ तस्वीरें **
राजस्थान में इसर और गौरा जी
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